मरकज़ुल मआरिफ़ मुंबई ने किया शैक्षणिक सत्र 2025–26 की पहली इंग्लिश भाषण प्रतियोगिता का आयोजन
“वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार विषयों का चयन बेहद ज़रूरी है ताकि दुनिया को सच्चाई से अवगत कराया जा सके।” — कॉर्पोरेटर मोहसिन हैदर
“प्रभावशाली भाषण में विषयवस्तु से अधिक महत्त्व शैली यानी अंदाज़-ए-बयान का होता है।” — प्रोफेसर आरिफ़ अंसारी
ईसी न्यूज़ डेस्क
29 जुन 2025
मरकज़ुल मआरिफ एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (MMERC) अपने शैक्षिक वर्ष के दौरान तीन वक्तृत्व प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है, जिसका उद्देश्य छात्रों के संचार और वक्तृत्व कौशल को बढ़ाना है, ताकि वे प्रभावी और प्रखर इस्लामी विद्वान बन सकें। 2025-26 शैक्षणिक वर्ष की पहली अंग्रेजी भाषा की वक्तृत्व प्रतियोगिता का आयोजन रविवार, 29 जुन 2025 को हुआ। कार्यक्रम का संचालन मरकज़ुल मआ़रीफ़ के शिक्षक मौलाना सलमान आलम कासमी ने किया, उन्होंने मरकज़ुल मआ़रीफ़ का संक्षिप्त परिचय दिया और इसके संस्थापक मौलाना बदरुद्दीन अजमल अल-कासमी के राष्ट्र और समुदाय के प्रति उल्लेखनीय योगदान को उजागर किया। कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत और नात (हजरत मोहम्मद स.अ.व. की प्रशंसा) से हुई। फिर मरकज़ुल मआ़रीफ़ के अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों के समन्वयक मुफ्ती जसीमुद्दीन कासमी ने अतिथियों का स्वागत किया।
प्रतियोगिता में आठ प्रतिभागियों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों ने विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर भाषण दिए। प्रतियोगिता का मूल्यांकन तीन विशिष्ट जजों ने किया: मौलाना मुहम्मद बुरहानुद्दीन कासमी, मरकज़ुल मआ़रीफ़ के डायरेक्टर, प्रतिष्ठित लेखक और पुरस्कार विजेता कवि; डॉ. ईसा नदवी, पूर्व प्रोफेसर और उप-प्राचार्य, वर्सोवा तिब्बिया कॉलेज; और प्रोफेसर मुहम्मद आरिफ अंसारी, पूर्व लेक्चरर, साबू सिद्दीकी इंजीनियरिंग कॉलेज और मरकज़ुल मआ़रीफ़ के उपाध्यक्ष। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हाफिज इक़बाल चुना वाला (रुक्ने शूरा, दारुल उलूम वक़्फ़ देवबंद) ने की, जबकि श्री हाजी मो़हसिन हैदर साहब (नगरसेवक, मुंबई महानगरपालिका, के-वेस्ट वार्ड अंधेरी) ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। इसमें मरकज़ुल मआ़रीफ़ के सभी छात्र और शिक्षक तथा मुंबई और बाहर के अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।
प्रतिभागियों के भाषणों के बाद, जजों ने छात्रों को मूल्यवान सुझाव दिए। प्रोफ़ेसर ईसा नदवी ने संस्थान की सफल कार्यप्रणाली और भाषा के महत्व पर रोशनी डालते हुए इतिहास के हवाले से कहा, “बीते ज़माने में कभी ऐसा नहीं हुआ कि मुसलमान समय की ज़रूरतों से महरूम रहे हों या आवश्यक वस्तुओं को तैयार करने में उन्होंने दूसरों पर निर्भरता दिखाई हो। ऐसा दौर भी गुज़रा है जब ख़लीफ़ा-ए-मुस्लिमीन बादलों को संबोधित कर कहा करते थे, ‘तुम जहाँ भी बरसो, तुम्हारा टैक्स आख़िरकार हमारे खज़ाने में ही आएगा।’ लेकिन वक़्त के साथ ऐसा बदलाव आया कि कहा जाने लगा, ‘अंग्रेज़ी हुकूमत में सूरज कभी अस्त नहीं होता।’”
प्रोफ़ेसर मोहम्मद आरिफ़ अंसारी ने भाषण को प्रभावशाली और सारगर्भित बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को याद रखने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “एक भाषण ऐसा होना चाहिए जैसे कि कोई पेंसिल—जिसमें हमेशा कुछ नुकीले बिंदु मौजूद हों।” उन्होंने यह भी कहा कि एक असरदार भाषण के लिए विषय-वस्तु से ज़्यादा महत्व शैली यानी अंदाज़-ए-बयान का होता है।
मौलाना मुहम्मद बुरहानुद्दीन कासमी ने परिणामों की घोषणा की, तौसिकुर रहमान लश्कर ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, मोहम्मद असद ने द्वितीय स्थान और मोआज कासमी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। सभी प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान किए गए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जनाब मोहसिन हैदर साहब ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी कार्यक्रम की सफलता प्रतिभागियों की संख्या से नहीं، बल्कि की परफार्मेंस से मापी जाती है। उन्होंने सभी सहभागियों को मुबारकबाद पेश करते हुए ईरान यात्रा का एक दिलचस्प किस्सा साझा किया। उन्होंने कहा कि पश्चिमी मीडिया हमेशा मुसलमानों के विरोध में रहा है। इसी यात्रा में टाइम्स ऑफ इंडिया का एक रिपोर्टर भी साथ था, जिसका उद्देश्य ईरान में अच्छाइयों की जगह खामियाँ ढूँढकर नकारात्मक रिपोर्टिंग करना था, लेकिन वह ऐसा करने में असफल रहा। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि समय और परिस्थिति को ध्यान में रखकर विषयों का चयन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि दुनिया को सच्चाई से अवगत कराया जा सके।
कार्यक्रम के अध्यक्ष जनाब इक़बाल चुना वाला साहब ने छात्रों की प्रदर्शन की भरपूर सराहना की। उन्होंने कहा, “इतनी बेहतरीन प्रस्तुति इतनी कम अवधि में स्कूल और कॉलेज के छात्र भी नहीं दे सकते, क्योंकि वहाँ की पढ़ाई अक्सर ट्यूशन पर निर्भर होती है, जबकि यहाँ ट्यूशन की कोई व्यवस्था नहीं है।” उन्होंने विद्यार्थियों द्वारा चुने गए विषयों पर प्रसन्नता व्यक्त की और हर विषय पर संक्षिप्त लेकिन अर्थपूर्ण टिप्पणियाँ भी प्रस्तुत कीं।
अपने विशेष संबोधन में मुफ्ती अब्दुल हमीद कासमी, मुहद्दिस, दारुल उलूम बासकंडी (आसाम) ने फ़रमाया कि मेहनत और अल्लाह से जुड़ाव इंसानी कामयाबी में अहम कुंजी की हैसियत रखते हैं। इसलिए छात्रों को इन दोनों चीज़ों को ज़रूर अपनाना चाहिए।
मौलाना असलम जावेद कासमी, मौलाना जमील अहमद कासमी और मौलाना तौकीर रहमानी ने कार्यक्रम को सफल बनाने में कीमती सहयोग किया। कार्यक्रम का समापन मस्जिद मार्कज़ुल मआरिफ के इमाम मौलाना मोहम्मद शाहिद कासमी की दुआ के साथ हुआ।